अगर आपने किसी को चेक दिया है और वो आदमी बैंक में जाकर चेक जमा करता है और पैसे निकालने या अकाउंट में ट्रान्सफर करने के लिए रिक्वेस्ट करता है।
उस समय चेक देने वाले के अकाउंट में उतना या उससे ज्यादा पैसे नहीं है तो बैंक उस चेक को बाउंस मान लेती है और पैसे देने से (Dishonour) माना कर देती है।
जब कोई चेक बाउंस होता है, तो बैंक एक स्लिप चेक के साथ जोड़ कर वापस करती है। इस स्लिप में चेक बाउंस होने का कारण लिखा रहता है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का कहना है कि बैंक अकाउंट या चेक बुक तभी बंद किया जा सकता है, जब 1 करोड़ रुपये या उससे अधिक अमाउंट के चेक चार बार से ज्यादा बाउंस हो गए हों।
अगर चेक बाउंस हो जाता है, तो सबसे पहले एक महीने के अंदर चेक देने वाले को एक लीगल नोटिस भेजना होता है।
इस नोटिस में कहा जाता है कि उसने जो चेक जारी किया था वो चेक बाउंस हो गया है अब वो 15 दिन के अंदर चेक की अमाउंट प्राप्त करता को दे दे।
नोटिस भेजने के बाद 15 दिन तक अमाउंट प्राप्त करता को इंतजार करना होता है यदि चेक देने वाला 15 दिन के अन्दर चेक अमाउंट दे देता है तो यह मामला यहीं सुलझ जाता है।
अगर चेक देने वाला पैसे देने से मना कर देता है या लीगल नोटिस का जबाब नहीं देता है तो Negotiable Instruments Act, 1881 (Originally published: 9 December 1881) की धारा-138 के तहत सिविल कोर्ट में केस दर्ज कर सकते हैं।
चेक बाउंस होना Negotiable Instruments Act, 1881 (Originally published: 9 December 1881) की धारा-138 के तहत निर्धारित, एक अपराध है।
हालांकि, चेक बाउंस होने की स्थिति में, पीड़ित पक्ष आरोपी के खिलाफ आपराधिक और साथ ही मुकदमा दर्ज कर सकता है।
इसके तहत चेक देने वाले (आरोपी) को 2 साल की सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है। यहाँ जुर्माने का पैसा चेक चेक अमाउंट का दोगुना हो सकता है।